अंतिम बस की सवारी — एक डरावनी रात की सच्चाई

दिल्ली की सर्द रातें वैसे ही डरावनी होती हैं, लेकिन एक खास रात ने सब कुछ बदल दिया। यह कहानी है उस अंतिम बस की, जो हर रात 11:30 बजे पुराने शहर से नई दिल्ली की ओर जाती थी। लेकिन उस दिन… वह बस अपनी मंज़िल तक कभी नहीं पहुँची।


शुरुआत: एक सामान्य सी रात

23 दिसंबर की रात थी। दिल्ली में कोहरा घना हो चला था। लोग अपने घरों में घुसे थे, लेकिन कुछ लोग काम के चलते अब भी सड़कों पर थे। मयंक, एक कॉलेज छात्र, जो ट्यूशन पढ़ाकर लौट रहा था, आखिरी बस पकड़ने के लिए भागते-भागते बस स्टैंड पर पहुँचा।

बस पहले से ही खड़ी थी। उसमें एक बूढ़ी औरत, एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति और कंडक्टर था। ड्राइवर सीट पर एक चुप्पा सा आदमी बैठा था, जिसका चेहरा सड़क की लाइटों से छिपा हुआ था।

मयंक चढ़ा, टिकट लिया और खिड़की वाली सीट पर बैठ गया।


अजीब सवारी

कुछ ही देर में बस ने सुनसान रास्ता पकड़ लिया। बाहर घना कोहरा, और अंदर गहरी खामोशी।

एक वीरान स्टॉप पर बस रुकी। कोई नहीं था… फिर भी दरवाज़ा अपने आप खुला। एक सफेद कपड़ों में लिपटा आदमी, जिसकी आँखें असाधारण रूप से काली थीं, बिना बोले चढ़ गया और सबसे पीछे जाकर बैठ गया।

मयंक ने कंडक्टर से पूछा,
“वो कौन है?”
कंडक्टर ने नज़रें झुकाते हुए कहा,
“इस रूट पर हर रात आता है… लेकिन कभी उतरता नहीं।”


डरावनी घटनाएँ शुरू होती हैं

बस आगे बढ़ी। तभी अचानक लाइटें झपकने लगीं। बाहर से कोई अजीब सी चीख सुनाई दी। बूढ़ी औरत की आंखें बंद थीं, मानो कुछ बुदबुदा रही हो। मयंक को महसूस हुआ कि बस की गति धीमी होती जा रही है, जैसे कोई भारी चीज़ उसे पीछे खींच रही हो।

फिर एक झटका लगा। बस एकदम से रुक गई।

ड्राइवर ने इंजन चेक करने के लिए नीचे उतरने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, कोहरे से एक काली परछाई अंदर घुसी और ड्राइवर गायब हो गया।


सच सामने आता है

अब बस में अफरातफरी मच गई। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात ये थी कि पीछे बैठा वह सफेद कपड़ों वाला आदमी अब ड्राइवर सीट पर बैठा था — और उसकी आँखें मयंक को शीशे में दिख रही थीं — बिना पलकें झपकाए, सीधे उसकी ओर घूरती हुईं।

कंडक्टर चिल्लाया, “यह वो ही है… जो हर साल 23 दिसंबर को आता है… ये वही ड्राइवर है… जिसने 10 साल पहले इस बस को खाई में गिरा दिया था… और तब से हर साल ये अंतिम बस… अपने साथ एक नई आत्मा ले जाती है…”


अंत

मयंक चिल्लाया, रोया, भागा… लेकिन कुछ नहीं हुआ। अगली सुबह, स्थानीय पुलिस को खाई के नीचे एक टूटी-फूटी बस मिली, जिसमें सिर्फ एक शव की पहचान नहीं हो पाई।

अखबार की हेडलाइन थी:
“23 दिसंबर की अंतिम बस फिर नहीं लौटी — एक बार फिर एक अज्ञात यात्री गायब!”


क्या आप कभी देर रात अंतिम बस में सफर करते हैं? अगली बार ज़रा ध्यान दीजिएगा… कहीं कोई अजनबी बिना टिकट चढ़ा, तो उसकी आँखों में ज़रूर देखिएगा — क्योंकि शायद वो इंसान नहीं… आपकी जगह लेने आया हो।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top